खाक में मेरी हस्ती मिला कर गया

यार जो भी मिला दिल जला कर गया
खाक में मेरी हस्ती मिला कर गया

प्यास जिसकी सदा मैं बुझाता रहा
जहर-ए-कातिल मुझे वो पिला कर गया

नाज़ उसकी वफ़ा पर मुझे था मगर
तीर वो भी जिगर पर चला कर गया

तलाश करता था कभी जो मुझे हर गली
नज़र वो आज मुझसे बचा कर गया

मानता था सहारा जो हरदम मुझे
बेसहारा मुझे वो बना कर गया

नींद आगोश में जिसकी आने लगी
मौत की नींद मुझ को सुला कर गया

आरज़ू थी “यारो” किसी की मुझे,
ख्वाब मेरे वही तो मिटा कर गया

Create a website or blog at WordPress.com